कूनो में चीतों के बाद अब बाघों के घूमने के लिए रणथंभौर से शिवपुरी तक बनेगा खास कॉरिडोर, अगले महीने माधव नेशनल पार्क आएंगी 3 बाघिन

author-image
Vijay Choudhary
एडिट
New Update
कूनो में चीतों के बाद अब बाघों के घूमने के लिए रणथंभौर से शिवपुरी तक बनेगा खास कॉरिडोर, अगले महीने माधव नेशनल पार्क आएंगी 3 बाघिन

देव श्रीमाली, GWALIOR. मध्यप्रदेश के कूनो अभयारण्य में नामीबिया से लाये गए चीतों का अब मन लगने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्मदिन पर चीते छोड़े थे। अब क्वारंटाइन के बाद उन्हें स्वछंद विचरण के लिए बड़े बाड़े में छोड़ा जा चुका हैं। इस प्रोजेक्ट के सफलता पूरा होने के साथ ही वन विभाग अब अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की तैयारी में जुट गया है। यह है रणथंभौर, कूनो और शिवपुरी के बीच एक अनूठा कॉरिडोर बनाने का है ताकि यहां एक बार फिर जानवर एक साथ रह और घूम सकें।  इसके लिए अब शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में बाघ लाकर बसाने की कवायद चालू हो गई है। यह कॉरिडोर बनते ही यह इलाका वन्य पर्यटकों के भी आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र बन जाएगा।



कूनो में लाये गए चीते



कूनो नेशनल पार्क को हालांकि एशियाटिक लॉयन को लाकर बसाने के लिए ही तैयार किया गया था। इसकी वजह यही है कि यह जगह रणथंभौर और माधव नेशनल पार्क शिवपुरी के बीच में था लेकिन कानूनी और राजनीतिक झमेलों के कारण यहां गुजरात के गिर से लाकर लॉयन तो नहीं बसाए जा सके लेकिन सितंबर में नामीबिया से लाकर चीते जरूर बसा दिए। सत्तर साल पहले विलुप्त हो गए चीते एक बार फिर भारत के कूनो के जंगलों में कुलांचे भरने लगे। जब हेबिटेट उनके अनुरूप हो गया तो सरकार और वन विभाग अब एक बार फिर कूनो से लेकर शिवपुरी तक बाघ कॉरिडोर बनाने के प्रोजेक्ट में जुट गया है।



रणथंभौर से शिवपुरी तक होगा टाइगर के लिए बफर जोन



रणथंभौर से निकलकर कई टाइगर एमपी की सीमा में आते-जाते रहते हैं लेकिन यहां ज्यादा समय नहीं रुकते। इसीलिए अब उनके लिए एक आसान और सुरक्षित कॉरिडोर बनाया जाना है। इसके लिए शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क का विस्तार करने की योजना है। प्रस्ताव के अनुसार टाइगर बफर जोन बनाने के लिये इसके दायरे में 13 गांव और लाये जा रहे हैं इसके साथ ही माधव नेशनल पार्क का विस्तार 600 वर्ग किलोमीटर हो जाएगा और अपवाद को छोड़कर इसकी सीमा कूनो नेशनल पार्क को टच करेगी। यानी रणथंभौर से लेकर शिवपुरी तक एक सुरक्षित कॉरिडोर बन जाएगा जिसमें वहां से निकलकर बाघ स्वछंद विचरण कर सकेंगे।



यह खबर भी पढ़िए



इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने जब राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहा, तब सोनिया ने कहा था- वे तुम्हें भी मार देंगे



सबके पहले मादा बाघ लाने की तैयारी



माधव नेशनल पार्क में तैयारी है कि जनवरी में तीन बाघ लाकर यहां बसाए जाएं। इसको लेकर उनके लिए वांछित हेबिटेट तैयार करने का प्रयास और परीक्षण चल रहा है। इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों का कहना है कि उनकी कोशिश है कि 15 जनवरी से पहले यहां तीन बाघ लाकर बसा दिए जाएं । ये तीनो बाघ रणथंभौर से ही लाए जाएंगे और कोशिश हो कि यह मादा ही हों। मादा बाघ लाने का निर्णय भी वन्य विशेषज्ञों के लंबे शोध के बाद हुआ है। विशेषज्ञों ने रणथंभौर से श्योपुर, मुरैना और शिवपुरी के जंगल तक आने-जाने वाले बाघों की आवाजाही पर लंबी निगरानी की तो यह तथ्य सामने आया कि वहां से निकलकर सिर्फ नर बाघ ही इन क्षेत्र में आते है लेकिन वे यहां रुकना पसंद नहीं करते बल्कि जल्द ही वापस रणथंबौर लौट जाते हैं। इसकी वजह तलाशने पर चौंकाने वाली बात सामने आई। उनकी वापसी इसलिए जल्दी हो जाती है क्योंकि इस क्षेत्र में मादा बाघ उन्हें नहीं मिलते जिससे वे वापस लौट जाते हैं। इसलिए वन्य विशेषज्ञों ने यहां सबसे पहले तीन मादा बाघ बसाने का ही फैसला किया है।



1991 में यहां थे दस बाघ 



माधव नेशनल पार्क नब्बे के दशक में बाघों की रिहायश का एक सबके बड़ा अड्डा था। तब यहां 10 बाघ थे। लेकिन देखरेख और सुरक्षा के अभाव में इनकी संख्या कम होती चली गई। अंतिम बार यहां बाघ 1996 में देखा गया था। इसी साल यहां की टाइगर सफारी यह कहते हुए बन्द कर दी गई थी कि यह स्थान अब टाइगर के लिए उपयुक्त नहीं है। इस सफारी की अंतिम बाघ जोड़ी 1996 में थी जिनको तारा और पेटू के नाम से जाना जाता था। इसके बाद फिर इसे टाइगर सफारी बनाने का फैसला हुआ। 



वन्य विशेषज्ञों का मत यहां बस सकते हैं 26 टाइगर



इससे पहले देश के प्रमुख वन्य विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र के भूगोल और पारिस्थितिकी पर गहन शोध किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस क्षेत्र में 26 टाइगर को बसाया जा सकता है जो यहां आराम से स्वतंत्रता पूर्वक जीवन यापन कर सकते हैं। इसके बाद इस लॉयन सफारी को फिर से शुरू करने का फैसला हुआ। अब इसमें तीन टाइगर लाने की तैयारी है।



सिर्फ 50 रुपये में मिल जाती थी बाघ के शिकार की अनुमति



आज भले ही इस अंचल में बाघों का अकाल पड़ गया हो अब सरकार को इन्हें फिर से बसाने और इनकी वंशवृद्धि के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा हो लेकिन महकमे के रिकॉर्ड बताते हैं कि एक समय ऐसा भी आया था जब यहां टाइगर की संखया इतनी ज्यादा हो गई थी कि उनसे मानव जीवन ही खतरे में पड़ने लगा था और सरकार को इनके शिकार के लिए आकर्षक योजना एलान करनी पड़ी थी जिसके अनुसार सिर्फ 50 रुपये के टिकट पर बाघ का शिकार करने की अनुमति दी जाती थी।



14 साल में हुआ 73 बाघों का शिकार



इस योजना ने बाघों के जीवन के मामले में बहुत ही घातक परिणाम दिए और 1956 से लेकर 1970 तक यानी महज 14 सालों में लोगों ने 73 से ज्यादा बेजुबान टाइगरों का शिकार कर इनकी जान ले ली। इसके बाद सरकार चेती और 1972  वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट आया तब इस पर रोक लग सकी लेकिन तब तक शिकारी इस अंचल में ज्यादातर बाघों के शिकार कर चुके थे।



सिंह प्रोजेक्ट के सीसीएफ उत्तम कुमार शर्मा इस प्रोजेक्ट की पुष्टि करते हैं। उनका कहना है कि जो बाघ रणथंभौर से कूनो और शिवपुरी के जंगलों तक आते हैं, माधव नेशनल पार्क का क्षेत्र टाइगर रिजर्व के लिए बढ़ने से अब वे उनमें भी आ सकेंगे। इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है और अग्रिम कार्यवाही चल रही है। 



इससे बढ़ेगा वन्य टूरिज्म



इस कॉरिडोर के बनने से एक नया टूरिस्ट सर्किट भी विकसित होगा। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े राजेन्द्र को उम्मीद है कि इससे पर्यटक दिल्ली या मुम्बई से आकर शिवपुरी में बाघ और कूनो में चीतों का दर्शन एक ही ट्रिप में कर सकेंगे इसलिए ये सर्किट काफी लोकप्रिय हो जाएगा।


MP News एमपी न्यूज Madhav National Park माधव नेशनल पार्क Madhya Pradesh Kuno Sanctuary Corridor to be built till Ranthambore Shivpuri tigress in mp मध्यप्रदेश कूनो अभयारण्य रणथंभौर शिवपुरी तक बनेगा कॉरिडोर मध्यप्रदेश में टाइगर